नवंबर 2025, झांसी
भाकृअनुप–भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी, ने कर्नाटक के पांच जिलों में फैले अमृत महल घास के मैदानों की मौजूदा स्थिति तथा प्रबंधन की चुनौतियों का आकलन करने हेतु एक स्टेकहोल्डर के साथ व्यापक बातचीत किया। आजादी के समय यह ग्रासलैंड 4 लाख एकड़ से ज़्यादा में फैला हुआ था, लेकिन अब यह घटकर लगभग 58,000 एकड़ रह गया है।
इस कंसल्टेशन में पशुपालन एवं पशु चिकित्सा सेवा विभाग, राज्य वन विभाग के अधिकारी एवं आस-पास के गांवों के पशुपालक शामिल थे, जो अपनी रोजी-रोटी के लिए इन घास के मैदानों पर निर्भर हैं। इन बातचीत के ज़रिए, 12 गुण, 9 कमजोरियां, 5 अवसर तथा 6 खतरे/चुनौतियां पहचानी गई, जिससे इस ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण चराई वाले इकोसिस्टम के पर्यावरणीय, संस्थानीक और सामाजिक-आर्थिक पहलुओं की अनुभवजन्य समझ मिली।

स्टडी ने सिस्टम के हिसाब से प्रशासन एवं प्रबंधन और प्रबंधन की कमियों को दस्तावेज के रूप में व्यवस्थित किया, और सहभागी पूर्ण तथा अनुकूलनीय घास के मैदानों के प्रबंधन के लिए पॉलिसी और संस्थागत सुधारों को गाइड करने के लिए एक सबूत का आधार बनाया। बायोमास उत्पादकता, मिट्टी की हेल्थ और जैव विविधता अनुकूलन को बेहतर बनाने के लिए असरदार रणनीति के तौर पर देसी घास एवं फलियों के साथ रीसीडिंग, चक्रण चराई और खरपतवार मुक्त जैसे जीर्णोद्धार के मौकों पर जोर दिया गया।
नीतिगत स्तर की सिफारिशें, जिसमें चराई के अधिकार, चारा बैंक एवं मुआवजे के तरीके शामिल हैं, जिससे गांवों में आजीविका बढ़ाने के साथ पर्यावरणीय बहाली को जोड़ने के लिए प्रस्तुत की गई।
बड़े लेवल पर, नतीजों ने चारे की सुरक्षा पक्का करने, देसी जानवरों की नस्लों को बचाने तथा जमीन के खराब होने को कम करने में पब्लिक घास के मैदानों की स्ट्रेटेजिक अहमियत पर ज़ोर दिया।
खास नतीजे:
एरिया में कमी: अमृत महल घास के मैदान का एरिया 4 लाख एकड़ (1956) से घटकर अब 58,000 एकड़ रह गया है।
कम्युनिटी की इच्छा: चक्रीय चराई (55.9%) और सीमित चराई (53%) के तरीकों को कम्युनिटी में अच्छी तरह से अपनाया गया।

पॉलिसी सपोर्ट: एक सकारात्मक नीतिगत सहायक इंडेक्स (PSI 1.995) दिखाता है कि अगर सेफ्टी-सुरक्षा-नेत सहायता, चराई के अधिकार तथा भरपाई जैसे सपोर्ट मिले तो कम्युनिटी चारागाह प्रबंधन के तरीकों को अपनाने के लिए तैयार है।
महसूस किए गए बदलाव: पिछले 20 सालों में, चारे की उपलब्धता (59.1%) और खाने लायक प्रजातियों (60.1%) में कमी आई है, जिसमें 41.3% जवाबदेह क्षेत्रफल में काफ़ी कमी देखी है।
यह विमर्श कम्युनिटी-आधारित एवं वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन के तरीकों के जरिए कर्नाटक के अमृत महल चारागाह को फिर से जिंदा करने की दिशा में एक जरूरी कदम है।
(स्रोत: भाकृअनुप–भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी)







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