1 नवंबर, 2025, गोवा
अन्तर्राष्ट्रीय सलीनिटी कॉन्फ्रेंस (वी – केयर - 2025) 31 अक्टूबर, 2025 को भाकृअनुप–केन्दीय तटीय कृषि अनुसंधान संस्थान, ओल्ड गोवा में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। चार दिन के इस इवेंट को इंडियन सोसाइटी ऑफ सॉइल सलिनिटी एंड वॉटर क्वालिटी (आएसएसएसडब्ल्यूक्यू), करनाल तथा तटीय कृषि अनुसंधान संशस्थान संघ, ओल्ड गोवा ने मिलकर भाकृअनुप–केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान केन्द्र, करनाल और भाकृअनुप-सीसीएआरआई, गोवा के साथ मिलकर आयोजन किया था। इसमें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एक्सपर्ट्स ने लवणीय इकोसिस्टम के प्रबंधन करने तथा ठीक करने की विधि पर बातचीत की।
श्री सुभाष शिरोडकर, जल संसाधन, कोऑपरेशन एवं लोक सहायता संस्थान (प्रोवेडोरिया) के मंत्री, गोवा सरकार, ने चीफ गेस्ट के तौर पर धन्यवाद ज्ञापन सत्र में शिरकत की। अपने संबोधन में, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि मिट्टी का खारापन एक बड़ी पर्यावरणीय चुनौती बनकर उभरा है साथ ही वैज्ञानिक समुदाय से खारी ज़मीनों के टिकाऊ प्रबंधन एवं सुधार में योगदान देने की अपील की। उन्होंने जमीन और पानी के मैनेजमेंट में भारत के पारंपरिक ज्ञान एवं पुराने तरीकों की भी तारीफ की, जो आज भी धारणीय तरीकों को प्रेरित करते हैं।

डॉ. ए. वेलमुरुगन, सहाय महानिदेशक (मिट्टी तथा पानी का प्रबंधन), भाकृअनुप, नई दिल्ली ने कॉन्फ्रेंस को सफलतापूर्वक आयोजित करने के लिए भाकृअनुप-सीएसएसआरआई, करनाल तथा भाकृअनुप-सीसीएआरआई, गोवा द्वारा मिलकर किए गए प्रयासों की तारीफ की। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि कठिन प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के चुनौतियों से निपटने हेतु इसे मिलकर काम करने वाले प्लेटफ़ॉर्म और इसकी जानकारी का आदान-प्रदान बहुत ज़रूरी है।
माननीय श्री रामी कतैशत, अफ्रीकन-एशियन रूरल डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (एएआरडीओ) के असिस्टेंट सेक्रेटरी जनरल, ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ज़मीन एवं पानी के संसाधनों पर बढ़ते दबाव के कारण मिट्टी का खारापन खाने तथा रोजी-रोटी की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि लवणता को असरदार तरीके से मैनेज करने एवं खेती की सस्टेनेबल ग्रोथ पक्का करने के लिए एकीकृत नीतिगत दृष्टिकोण, तकनीकी खोज एवं किसानों की अगुवाई वाली पहल ज़रूरी हैं।
डॉ. परवीन कुमार, निदेशक, भाकृअनुप-सीसीएआरआई, गोवा, ने संस्थान द्वारा विकसित कई नवीन तकनीकों पर प्रकाश डाला, जिनमें नमक-सहिष्णु धान की किस्में, एकीकृत कृषि प्रणाली (आईएफएस) मॉडल, बेहतर बागवानी फसल किस्में, जलवायु-अनुकूल शूकर नस्ल तथा खजाना भूमि के पुनरुद्धार और टिकाऊ प्रबंधन के लिए प्रौद्योगिकियां शामिल हैं। उन्होंने संस्थान के कृषि-पारिस्थितिकी पर्यटन मॉडल पर भी विस्तार से बताया, जो तटीय कृषक समुदायों के बीच आजीविका विविधीकरण एवं लचीलेपन को बढ़ावा देता है।
डॉ. आर.के. यादव, निदेशक, भाकृअनुप-सीएसएसआरआई, करनाल, ने बताया कि सम्मेलन में एशिया, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, लैटिन अमेरिका और अन्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले 165 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम में छह विषयगत तकनीकी सत्र तथा मुख्य संबोधन शामिल थे, जिसमें लवणता अनुसंधान, शमन रणनीतियों और जलवायु लचीलेपन से संबंधित मुद्दों की एक विस्तृत श्रृंखला को शामिल किया गया था। डॉ. यादव ने ने कॉन्फ्रेंस से निकली खास सिफारिशें पेश की, जिसमें रिसर्च, टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट और पॉलिसी बनाने के लिए भविष्य की दिशाएं बताई गई।

डॉ. ए.के. राय, हेड, सॉइल और क्रॉप मैनेजमेंट, भाकृअनुप-सीएसएसआरआई, करनाल, ने कॉन्फ्रेंस से सामने आई खास सिफारिशें पेश की, और रिसर्च, टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट और पॉलिसी बनाने के लिए भविष्य की दिशा बताई।
कॉन्फ्रेंस अलग-अलग सेशन में बेस्ट ओरल और पोस्टर प्रेजेंटेशन के लिए अवॉर्ड देने के साथ खत्म हुई, जिसमें हिस्सा लेने वाले वैज्ञानिक तथा शोधकर्ताओं के शानदार योगदान को पहचान मिली।
इंटरनेशनल सैलिनिटी कॉन्फ्रेंस 3.0 ने बातचीत, सहयोग एवं इनोवेशन हेतु एक ग्लोबल प्लेटफॉर्म के तौर पर काम किया, जिसने दुनिया भर में मज़बूत तथा टिकाऊ लवणीय पारिस्थितिक तंत्र बनाने हेतु साझा कमिटमेंट को पुख्ता किया।
(स्रोत: भाकृअनुप–केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान केन्द्र, गोवा)







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